
Tejas mk1 का इतिहास: भारत का स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, भारत का पहला स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA), देश की एयरोस्पेस और रक्षा क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। तेजस एमके1 की यात्रा भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता हासिल करने की महत्वाकांक्षा और तकनीकी, नौकरशाही और भू-राजनीतिक चुनौतियों को पार करने के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। यह लेख तेजस एमके1 के इतिहास, विकास और महत्व पर प्रकाश डालता है।
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Tejas mk1 का शुरुआत और परिकल्पना
Tejas mk1 की कहानी 1980 के दशक में शुरू होती है, जब भारत ने अपने पुराने हो चुके मिग-21 लड़ाकू विमानों को बदलने की आवश्यकता महसूस की। भारतीय वायु सेना (IAF) को एक आधुनिक, हल्के वजन वाले, मल्टी-रोल लड़ाकू विमान की आवश्यकता थी, जिसे देश में ही बनाया जा सके, ताकि विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हो सके। 1983 में, भारत सरकार ने एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) के तत्वावधान में लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) मुख्य निर्माता था।

LCA कार्यक्रम के प्राथमिक उद्देश्य था: एक लागत-प्रभावी, चुस्त और तकनीकी रूप से उन्नत लड़ाकू विमान विकसित करना, जो वायु श्रेष्ठता, जमीनी हमले और टोही मिशनों को पूरा कर सके। इस कार्यक्रम का लक्ष्य डिजाइन, एवियोनिक्स और प्रणोदन प्रणालियों सहित स्वदेशी एयरोस्पेस क्षमताओं को विकसित करना भी था।
Tejas mk1 विकास और चुनौतियाँ
तेजस एमके1 का विकास एक जटिल और लंबी प्रक्रिया थी, जिसमें कई दशक लगे। इस परियोजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें आधुनिक लड़ाकू विमानों के डिजाइन में सीमित अनुभव और, 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रौद्योगिकी प्रतिबंध, और फ्लाई-बाय-वायर नियंत्रण, मिश्रित सामग्री और उन्नत एवियोनिक्स जैसी अत्याधुनिक प्रणालियों को विकसित करने की आवश्यकता शामिल थी।

- डिजाइन और प्रोटोटाइप: डिजाइन चरण 1980 के दशक के अंत में शुरू हुआ, और पहला प्रोटोटाइप, जिसे TD-1 नाम दिया गया, 1995 में बनकर तैयार हुआ। विमान में डेल्टा विंग कॉन्फ़िगरेशन थी, जो उच्च गतिशीलता और सुपरसोनिक प्रदर्शन के लिए अनुकूलित थी।और इसमें मिश्रित सामग्री का उपयोग, जो एयरफ्रेम का लगभग 45% हिस्सा है, ने वजन कम किया और स्थिरता बढ़ाया।
- पहली उड़ान और परीक्षण: तेजस एमके1 ने अपनी पहली उड़ान 4 जनवरी, 2001 को भरी, जिसे विंग कमांडर राजीव कोठियाल ने उड़ाया। यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, लेकिन परिचालन तत्परता तक पहुँचने का सफर अभी लंबा था। कठोर सैन्य मानकों को पूरा करने के लिए कई प्रोटोटाइपों का व्यापक परीक्षण और प्रमाणन किया गया।
- इंजन और एवियोनिक्स: सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक स्वदेशी इंजन, कावेरी का विकास था, जिसे तकनीकी कठिनाइयों और देरी का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप, तेजस एमके1 को शुरू में जनरल इलेक्ट्रिक F404-GE-IN20 टर्बोफैन इंजन से लैस किया गया। विमान के एवियोनिक्स सूट, जिसमें मल्टी-मोड रडार (MMR) और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (EW) सिस्टम शामिल हैं, को स्वदेशी रूप से विकसित किया गया, जो रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत की बढ़ती विशेषज्ञता को दर्शाता है।
- परिचालन मंजूरी: वर्षों के परीक्षण और शोधन के बाद, तेजस एमके1 ने 2011 में प्रारंभिक परिचालन मंजूरी (IOC) और 2019 में अंतिम परिचालन मंजूरी (FOC) हासिल की। इन मील के पत्थरों ने विमान के प्रदर्शन को मान्यता दी और IAF में इसके शामिल होने का मार्ग प्रशस्त किया।

Tejas mk1 का शामिल होना और परिचालन सेवा
तेजस एमके1 को आधिकारिक तौर पर 1 जुलाई, 2016 को भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया, जिसके साथ पहली स्क्वाड्रन, नंबर 45 स्क्वाड्रन “फ्लाइंग डैगर्स” का गठन किया गया। विमान के शामिल होने ने भारत के रक्षा उद्योग के लिए एक ऐतिहासिक क्षण को चिह्नित किया, क्योंकि यह दो दशकों में सेवा में शामिल होने वाला पहला स्वदेशी रूप से विकसित लड़ाकू विमान बन गया।

तेजस एमके1 को तब से वायु रक्षा, टोही और प्रशिक्षण सहित विभिन्न मिशनों के लिए तैनात किया गया है। इसके प्रदर्शन की गतिशीलता, रखरखाव में आसानी और उन्नत एवियोनिक्स के लिए सराहना की गई है। हालाँकि, विमान को इसकी सीमित पेलोड क्षमता और रेंज के लिए आलोचना का भी सामना करना पड़ा है, जिसके कारण तेजस Mk1A वेरिएंट का विकास किया गया।
Tejas mk1 का महत्व और विरासत
तेजस एमके1 सिर्फ एक लड़ाकू विमान से कहीं अधिक है; यह रक्षा प्रौद्योगिकी में वैश्विक लीडर बनने की भारत की आकांक्षाओं का प्रतीक है। इस कार्यक्रम ने अनुसंधान संस्थानों, रक्षा ठेकेदारों और कुशल कर्मियों के एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दिया है, जो तेजस Mk2 और एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) जैसे भविष्य की परियोजनाओं की नींव रखता है।
इसके अलावा, तेजस एमके1 ने भारत के निर्यात क्षमता को बढ़ाया है, जिसमें कई देशों ने विमान को हासिल करने में रुचि दिखाई है। इसकी सफलता ने यह प्रदर्शित किया है कि भारत विश्व स्तरीय सैन्य हार्डवेयर को डिजाइन और निर्मित कर सकता है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होती है और रणनीतिक स्वायत्तता बढ़ती है।
निष्कर्ष
Tejas mk1 की यात्रा, अवधारणा से लेकर परिचालन सेवा तक, दृढ़ता, नवाचार और राष्ट्रीय गौरव की कहानी है। हालांकि इस कार्यक्रम को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन इसकी सफलता ने भारत को वैश्विक एयरोस्पेस उद्योग में एक सक्षम खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है। जैसे-जैसे तेजस एमके1 का विकास जारी है, यह रक्षा में आत्मनिर्भरता और तकनीकी उत्कृष्टता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का एक उज्ज्वल उदाहरण बना हुआ है।
