राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन को US द्वारा आपूर्ति किए गए आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (ATACMS) का उपयोग रूस के क्षेत्र में पहली बार लक्ष्यों पर हमला करने की अनुमति दी है। यह कदम अमेरिकी विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, खासकर जब यह राष्ट्रपति-चुनाव डोनाल्ड ट्रंप के पद संभालने से महज दो महीने पहले लिया गया है। ट्रंप ने यूक्रेन के प्रति अमेरिकी समर्थन पर संदेह जताया है, और इस समय पर लिया गया निर्णय इस संदर्भ में महत्वपूर्ण बन जाता है।
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US द्वारा कुर्स्क क्षेत्र में मिसाइल हमलों की अनुमति:
इस नई अनुमति के तहत, यूक्रेनी सेनाओं को रूस के कुर्स्क क्षेत्र में सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की इजाजत मिल गई है, जहां लगभग 10,000 उत्तर कोरियाई सैनिकों को रूस की मदद के लिए तैनात किया गया है। ATACMS मिसाइल की रेंज लगभग 190 मील है, जो यूक्रेन को पहले से ज्यादा गहरे रूसी नियंत्रित इलाकों में हमला करने की क्षमता प्रदान करती है। यह कदम यूक्रेन को अपने अभियान में और अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास है, खासकर रूस के साथ युद्ध में।

युद्धभूमि पर बदलते समीकरण:
बाइडन का यह निर्णय युद्धभूमि पर बदलते समीकरणों के जवाब के रूप में देखा जा रहा है, विशेष रूप से अगस्त में यूक्रेन की काउंटरऑफेंसिव के बाद, जिसका उद्देश्य कुर्स्क क्षेत्र को पुनः प्राप्त करना था। इस बीच, उत्तर कोरियाई सैनिकों की तैनाती ने अमेरिकी अधिकारियों को चिंता में डाल दिया है, क्योंकि यह संकेत देता है कि रूस संघर्ष में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकता है। हालांकि, कुछ अमेरिकी सलाहकारों का मानना है कि यह बढ़ी हुई कार्रवाई रूस से कड़ा प्रतिकार उत्पन्न कर सकती है, लेकिन अन्य का मानना है कि यह यूक्रेन को महत्वपूर्ण सैन्य लक्ष्यों को निशाना बनाने और उत्तर कोरियाई समर्थन को रोकने का एक रणनीतिक लाभ दे सकती है।
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US के इस नीति परिवर्तन पर विवाद:
बाइडन प्रशासन में यह नीति परिवर्तन एक बड़ा विवाद बन गया है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम यूक्रेन को कुछ सामरिक लाभ दे सकता है, जैसे महत्वपूर्ण रूसी सैन्य संपत्तियों को निशाना बनाना, लेकिन यह युद्ध की समग्र दिशा में कोई बड़ा बदलाव नहीं लाएगा। मिसाइलों की सीमित संख्या और परिचालन बाधाओं के कारण इस कदम की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, यह भी संभावना जताई जा रही है कि यदि बाइडन की नीति प्रभावी साबित होती है, तो अन्य नाटो देशों, जैसे यूके और फ्रांस, भी अपनी लंबी दूरी की मिसाइलों को रूस के खिलाफ इस्तेमाल करने की अनुमति दे सकते हैं।
रूस पर US का बढ़ता दबाव:
बाइडन का यह निर्णय रूस के आंतरिक मामलों में सीधे हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है, और इससे संघर्ष को एक नए उच्च स्तर तक बढ़ने का खतरा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह बाइडन प्रशासन का अंतिम प्रयास हो सकता है रूस पर दबाव डालने का, इससे पहले कि जनवरी में एक अधिक व्यावहारिक ट्रंप प्रशासन सत्ता संभाले। ऐसे में यह कदम रूस और यूक्रेन के संघर्ष को एक नए मोड़ पर ले जा सकता है, जो आने वाले महीनों में वैश्विक राजनीति पर महत्वपूर्ण असर डाल सकता है।