
कावेरी इंजन(Kaveri Engine) भारत के सबसे महत्वाकांक्षी एयरोस्पेस प्रोजेक्ट्स में से एक है, जो भारत की सैन्य विमानन प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह टर्बोफैन इंजन भारत के स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस को शक्ति प्रदान करने के लिए विकसित किया गया था। कावेरी कार्यक्रम इनोवेशन, चैलेंजेज और दृढ़ संकल्प की एक अनूठी कहानी है। यह लेख कावेरी इंजन के इतिहास, विकास और वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालता है। तो आइए देखते हैं …
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Kaveri Engine की शुरुआत
कावेरी इंजन(Kaveri Engine) परियोजना की शुरुआत 1986 में गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) द्वारा की गई थी, जो भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की एक प्रयोगशाला है। इसका मुख्य उद्देश्य एक स्वदेशी टर्बोफैन इंजन विकसित करना था, जो भारत के पहले स्वदेशी चौथी पीढ़ी के मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट तेजस को शक्ति प्रदान कर सके।

उस समय, भारत अपने सैन्य विमानों के लिए विदेशी इंजनों पर निर्भर था, जैसे कि रूसी क्लिमोव RD-33 और अमेरिकी जनरल इलेक्ट्रिक F404। कावेरी कार्यक्रम का लक्ष्य इस निर्भरता को कम करना और भारत को एयरोस्पेस प्रणोदन प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाना था।
Kaveri Engine विकास और चुनौतियाँ
कावेरी इंजन(Kaveri Engine) का विकास एक जटिल और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया थी। इंजन को तेजस के लिए लगभग 80 kN (किलोन्यूटन) का थ्रस्ट प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिसमें भविष्य में उच्च थ्रस्ट वाले वेरिएंट बनाने की योजना भी शामिल थी। हालांकि, इस परियोजना को कई तकनीकी, वित्तीय और लॉजिस्टिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा:

- तकनीकी बाधाएँ: एक उच्च-प्रदर्शन टर्बोफैन इंजन विकसित करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों में महारत हासिल करना आवश्यक था, जैसे कि मटीरियल साइंस, थर्मोडायनामिक्स और प्रिसिजन इंजीनियरिंग। भारत का इस क्षेत्र में सीमित अनुभव होने के कारण GTRE को लगभग शुरुआत से ही काम करना पड़ा।
- वजन की समस्या: परीक्षण के दौरान, कावेरी इंजन का वजन अपेक्षा से अधिक पाया गया, जिसने इसके प्रदर्शन और तेजस के लिए उपयुक्तता को प्रभावित किया। थ्रस्ट और विश्वसनीयता बनाए रखते हुए वजन कम करना एक बड़ी चुनौती साबित हुआ।
- विलंब और बजट से अधिक खर्च: परियोजना में बार-बार देरी हुई, जिसका कारण प्रौद्योगिकी की जटिलता और सीमित वित्तपोषण था। 2000 के दशक तक, कावेरी कार्यक्रम अपने समयसीमा से काफी पीछे चल रहा था।
- विदेशी सहयोग: तकनीकी बाधाओं को दूर करने के लिए, GTRE ने फ्रांसीसी इंजन निर्माता स्नेकमा (अब साफ्रान) के साथ सहयोग किया। हालांकि, यह सहयोग अपेक्षित परिणाम नहीं दे सका, और परियोजना को लगातार असफलताओं का सामना करना पड़ा।
Kaveri Engine टेस्टिंग एंड ट्रायल्स
चुनौतियों के बावजूद, कावेरी इंजन का व्यापक परीक्षण किया गया। 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत तक, इंजन ने कई ग्राउंड टेस्ट पूरे किए और एक संशोधित रूसी Il-76 ट्रांसपोर्ट विमान पर उड़ान परीक्षण भी किए। हालांकि इन परीक्षणों ने इंजन की बुनियादी कार्यक्षमता को प्रदर्शित किया, लेकिन इन्होंने थ्रस्ट और विश्वसनीयता के मामले में कमियों को भी उजागर किया।

कावेरी इंजन की वर्तमान स्थिति
2024 तक, कावेरी इंजन को तेजस विमान में एकीकृत नहीं किया गया है। इसके बजाय, तेजस जनरल इलेक्ट्रिक F404-GE-IN20 इंजन से संचालित होता है, और अब इसे अधिक शक्तिशाली F414 इंजन में अपग्रेड करने की योजना है। हालांकि, कावेरी कार्यक्रम को समाप्त नहीं किया गया है। इसके बजाय, यह अनुसंधान और विकास के लिए एक मंच के रूप में विकसित हुआ है:
- कावेरी डेरिवेटिव इंजन: GTRE ने कावेरी इंजन के वैकल्पिक उपयोगों की खोज की है, जैसे कि मानवरहित युद्धक विमान (UCAV) और समुद्री प्रणोदन प्रणाली। कावेरी इंजन का एक डेरिवेटिव, जिसे “कावेरी मरीन गैस टर्बाइन” (KMGT) कहा जाता है, भारतीय नौसेना के जहाजों में उपयोग के लिए सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है।
- भविष्य के फाइटर प्रोग्राम: कावेरी इंजन को भारत के अगली पीढ़ी के फाइटर प्रोग्राम्स, जैसे कि एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) और ट्विन इंजन डेक-बेस्ड फाइटर (TEDBF), के लिए विचार किया जा रहा है। GTRE कावेरी का एक उन्नत संस्करण, जिसे “कावेरी K9” या “कावेरी ड्राई इंजन” कहा जाता है, विकसित कर रहा है, जो उच्च थ्रस्ट और बेहतर प्रदर्शन प्रदान करने का लक्ष्य रखता है।
- साफ्रान के साथ सहयोग: हाल के वर्षों में, GTRE ने साफ्रान के साथ सहयोग को नवीनीकृत किया है, ताकि कावेरी डिज़ाइन पर आधारित 110 kN थ्रस्ट वाले इंजन का सह-विकास किया जा सके। यह साझेदारी साफ्रान की तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाने का लक्ष्य रखती है, जबकि बौद्धिक संपदा का स्वामित्व भारत के पास रहेगा।
- तकनीकी स्पिन-ऑफ: कावेरी कार्यक्रम ने उन्नत सामग्री, निर्माण तकनीक और परीक्षण सुविधाओं के विकास को बढ़ावा देकर भारत के एयरोस्पेस इकोसिस्टम में योगदान दिया है। ये स्पिन-ऑफ अन्य DRDO परियोजनाओं और भारत के निजी एयरोस्पेस उद्योग को लाभ पहुंचा रहे हैं।
Kaveri Engine आगे का रास्ता
कावेरी इंजन(Kaveri Engine) भारत के महत्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के संकल्प का प्रतीक बना हुआ है। हालांकि यह अपने मूल लक्ष्य, तेजस को शक्ति प्रदान करने, को प्राप्त नहीं कर पाया है, लेकिन इस कार्यक्रम ने एयरोस्पेस प्रणोदन में भविष्य की प्रगति की नींव रखी है।

नए फोकस, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और बढ़े हुए वित्तपोषण के साथ, कावेरी इंजन भारत के रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चाहे वह अगली पीढ़ी के फाइटर विमानों के लिए हो या समुद्री गैस टर्बाइन के रूप में, कावेरी कार्यक्रम भारत की तकनीकी उत्कृष्टता की दिशा में प्रेरणा बना हुआ है।
निष्कर्ष
कावेरी इंजन का इतिहास स्वदेशी नवाचार की चुनौतियों और सफलताओं का प्रमाण है। हालांकि इस कार्यक्रम को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा है, लेकिन इसने भारत की एयरोस्पेस क्षमताओं में योगदान दिया है और इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की एक नई पीढ़ी को प्रेरित किया है। जैसे-जैसे भारत रक्षा अनुसंधान और विकास में निवेश करता जा रहा है, कावेरी इंजन एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर भविष्य की दिशा में एक प्रेरणा बना हुआ है।