
भारत ने रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में एक नया इतिहास रच दिया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में देश का रक्षा उत्पादन पहली बार ₹1.27 लाख करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचा है, जबकि रक्षा निर्यात ₹21,000 करोड़ से अधिक हो गया है। यह उपलब्धि भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया‘ और ‘आत्मनिर्भर भारत‘ जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं का सीधा परिणाम है, जिन्होंने स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा दिया है।
यह वृद्धि न केवल भारत की सैन्य स्वावलंबन की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि वैश्विक बाजार में भारत को एक प्रमुख रक्षा निर्यातक के रूप में स्थापित करने में भी मदद कर रही है। इस लेख में हम भारत के रक्षा उत्पादन के इस ऐतिहासिक सफर, इसके पीछे के कारणों और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
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भारत के रक्षा उत्पादन का बढ़ता ग्राफ
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। 2016-17 में देश का रक्षा उत्पादन मात्र ₹44,000 करोड़ था, जो अब बढ़कर ₹1.27 लाख करोड़ हो गया है। यह वृद्धि लगभग 190% की छलांग को दर्शाती है। इसी तरह, रक्षा निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2014-15 में भारत का रक्षा निर्यात ₹1,500 करोड़ से भी कम था, जो अब ₹21,000 करोड़ से अधिक हो चुका है।
प्रमुख योगदानकर्ता क्षेत्र
- सैन्य वाहन एवं हथियार प्रणालियाँ (जैसे तेजस लड़ाकू विमान, अर्जुन टैंक)
- नौसेना के लिए जहाज निर्माण (विशाखापत्तनम श्रेणी के विध्वंसक, स्कॉर्पीन पनडुब्बियाँ)
- मिसाइल तकनीक (ब्रह्मोस, अग्नि श्रेणी की मिसाइलें)
- ड्रोन एवं साइबर सुरक्षा प्रणालियाँ
रक्षा उत्पादन में वृद्धि के प्रमुख कारण
1. ‘मेक इन इंडिया’ का प्रभाव
सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ नीति ने रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दिया है। इसके तहत:
- निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन – डीआरडीओ और HAL जैसी सार्वजनिक कंपनियों के साथ-साथ निजी कंपनियों (जैसे टाटा, महिंद्रा, लार्सन एंड टुब्रो) को भी रक्षा अनुबंध दिए गए।
- विदेशी निवेश में वृद्धि – FDI लिमिट 49% से बढ़ाकर 74% की गई, जिससे ग्लोबल कंपनियों ने भारत में संयुक्त उद्यम स्थापित किए।
2. आत्मनिर्भर भारत अभियान
कोविड-19 के बाद आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान ने भारत को रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए प्रेरित किया। इसके तहत:
- आयात प्रतिबंध सूची (Positive Indigenisation List) – 4,666 रक्षा वस्तुओं का आयात चरणबद्ध तरीके से बंद किया जा रहा है।
- iDEX (Innovations for Defence Excellence) – स्टार्टअप्स और MSMEs को रक्षा अनुसंधान के लिए फंडिंग दी जा रही है।
3. रक्षा निर्यात को बढ़ावा
भारत अब केवल रक्षा आयातक नहीं, बल्कि निर्यातक भी बन गया है। प्रमुख निर्यात गंतव्यों में शामिल हैं:
- फिलीपींस (ब्रह्मोस मिसाइल डील)
- अर्मेनिया (पिनाका रॉकेट लॉन्चर)
- मध्य पूर्व एवं अफ्रीकी देश (हल्के हेलीकॉप्टर, सुरक्षा उपकरण)

भविष्य की संभावनाएँ: 2025 तक ₹1.75 लाख करोड़ का लक्ष्य
रक्षा मंत्रालय ने 2024-25 के लिए ₹1.75 लाख करोड़ के रक्षा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा रहे हैं:
1. सेमीकंडक्टर और AI का बढ़ता उपयोग
- भारत अब ड्रोन वॉरफेयर, साइबर डिफेंस और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश कर रहा है।
- टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड (TDF) के तहत क्रांतिकारी तकनीकों को सपोर्ट किया जा रहा है।
2. प्राइवेट सेक्टर की बढ़ती भागीदारी
- टाटा-एयरबस सी-295 परियोजना – गुजरात में विमान निर्माण की सुविधा शुरू हो चुकी है।
- अदाणी समूह ने ड्रोन और नेवल सिस्टम्स में बड़े निवेश किए हैं।
3. ग्लोबल डिफेंस हब बनने की राह
- Aero India और DefExpo जैसे आयोजनों से विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया जा रहा है।
- यूएई, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ नई साझेदारियाँ बनाई जा रही हैं।

एक स्वावलंबी भारत की ओर
भारत का ₹1.27 लाख करोड़ का रक्षा उत्पादन और ₹21,000 करोड़ का निर्यात न केवल एक आर्थिक उपलब्धि है, बल्कि देश की सुरक्षा एवं तकनीकी क्षमता का प्रतीक भी है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों ने इस विकास को गति दी है। अगले कुछ वर्षों में, भारत का लक्ष्य विश्व के शीर्ष 5 रक्षा निर्यातकों में शामिल होने का है।
यह सफर साबित करता है कि सही नीतियों और दृढ़ संकल्प के साथ, भारत न केवल अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा कर सकता है, बल्कि वैश्विक बाजार में भी एक प्रमुख खिलाड़ी बन सकता है।